मेरठ। विधानसभा चुनाव 2027 को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। इस बार अनुमान लगाया जा रहा है कि 2027 के विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच होगा। बात अगर सिवालखास विधानसभा की करें तो मेरठ और बागपत लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वाली सिवालखास विधानसभा जिले की महत्वपूर्ण सीटों में गिनी जाती है। इस ग्रामीण पृष्ठभूमि वाली सीट की खासियत है कि पिछले छह विधानसभा चुनावों के दौरान कोई भी दल लगातार दूसरी बार यहां से चुनाव नहीं जीत सका है।सिवालखास सीट पर पिछले छह चुनावों में अलग-अलग दल के विधायकों ने विजय पताका फहराई है। सन 1974 में अस्तित्व में आई सिवालखास सीट 2012 तक सुरक्षित सीट रही। इस सीट पर अब तक सबसे ज्यादा बार रालोद प्रत्याशी विजयी हुए हैं। किसी समय रालोद का गढ़ मानी जाने वाली इस सीट पर तीन विधानसभा चुनावो से बसपा, सपा और भाजपा का कब्जा रहा। क्योंकि सन 2007, 2012 और 2017 में रालोद इस सीट को जीतने में सफल नहीं हुए थी। 2022 में हुए विधानसभा चुनाव पर अगर नजर डाली जाए तो जातीय समीकरण के हिसाब से सिवालखास विधानसभा क्षेत्र में करीब एक लाख 16 हजार मुस्लिम, 60 से 70 हज़ार के करीब जाट, 48 हजार के करीब दलित, 30 हजार त्यागी-ब्राह्माण, 16 हजार गुर्जर, 16 हजार ठाकुर और लगभग 50 हजार में पाल, कश्यप, प्रजापति, सैनी, वाल्मिकि, जोगी आदि मतदाताओं के अलावा यहां करीब चार हजार यादव मतदाता भी हैं। अब अगर बात मौजूदा विधायक हाजी गुलाम मोहम्मद की करें तो सिवालखास विधानसभा सीट से वह वर्ष 2012 में सपा के सिंबल पर जीते थे। उस समय उन्होंने 3,587 वोट से रालोद के यशवीर सिंह को हराया था। उस समय बसपा के जगत सिंह तीसरे और भाजपा के समरपाल सिंह चौथे नंबर पर थे। उसके बाद सन 2017 के चुनाव में यहां भाजपा ने बाजी मारी थी।सिवालखास विधानसभा सीट से 2017 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के जितेंद्र सतवई जीते थे। इसके बाद सन 2022 के चुनाव में सपा रालोद का गठबंधन इस विधानसभा में कामयाब हो गया था। गठबंधन में सीट रालोद के खाते में जाने के बाद हाजी गुलाम मोहम्मद नल के चुनाव चिन्ह पर मैदान में उतरे थे। यहां पर पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के समय से चला आ रहा जाट-मुस्लिम फैक्टर गुलाम मोहम्मद के काम आया था। सपा के साथ गठबंधन के दम पर जहां रालोद का नल पानी उगलने में कामयाब रहा था। तो वहीं भाजपा का फूल मुरझा गया था। इस सीट पर गुलाम मोहम्मद ने 1,01,005 वोट हासिल किए थे। और भाजपा प्रत्याशी मनिंदरपाल को 91,510 वोट मिले थे। बसपा के मुकर्रम अली उर्फ नन्हे खातून को 29,386 वोट मिले थे। इनके अलावा कोई भी प्रत्याशी चार हजार वोट भी हासिल नहीं कर पाया था। गुलाम मोहम्मद ने भाजपा प्रत्याशी मनिंदरपाल सिंह को 9,495 वोट से हरा दिया था। अब सवाल उठता है कि क्या इस बार 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव में मौजूदा विधायक हाजी गुलाम मोहम्मद हैट्रिक लगाने में कामयाब होंगे कि नहीं ? क्योंकि 2024 के लोकसभा चुनाव में रालोद सुप्रीमों जयंत चौधरी के भाजपा खेमे में जाने के बाद इस बार के विधानसभा चुनाव में सिवालखास विधानसभा में जाट-मुस्लिम फैक्टर कितना कामयाब होगा ? और उनके द्वारा वक्फ बोर्ड संशोधन बिल का समर्थन करने के बाद मुस्लिम समुदाय के बीच रालोद को लेकर गुस्सा देखने को मिल चुका है। तो किसानों के मुद्दों पर जयंत चौधरी की चुप्पी के अलावा खुद विधायक गुलाम मोहम्मद के द्वारा ऐसे कई मामलों पर चुप्पी साथ लेना जैसे कि सिवालखास विधानसभा में विधायक गुलाम मोहम्मद लगाएंगे हैट्रिक या फिर होंगे फैल ?
मेरठ। विधानसभा चुनाव 2027 को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। इस बार अनुमान लगाया जा रहा है कि 2027 के विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच होगा। बात अगर सिवालखास विधानसभा की करें तो मेरठ और बागपत लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वाली सिवालखास विधानसभा जिले की महत्वपूर्ण सीटों में गिनी जाती है। इस ग्रामीण पृष्ठभूमि वाली सीट की खासियत है कि पिछले छह विधानसभा चुनावों के दौरान कोई भी दल लगातार दूसरी बार यहां से चुनाव नहीं जीत सका है।सिवालखास सीट पर पिछले छह चुनावों में अलग-अलग दल के विधायकों ने विजय पताका फहराई है। सन 1974 में अस्तित्व में आई सिवालखास सीट 2012 तक सुरक्षित सीट रही। इस सीट पर अब तक सबसे ज्यादा बार रालोद प्रत्याशी विजयी हुए हैं। किसी समय रालोद का गढ़ मानी जाने वाली इस सीट पर तीन विधानसभा चुनावो से बसपा, सपा और भाजपा का कब्जा रहा। क्योंकि सन 2007, 2012 और 2017 में रालोद इस सीट को जीतने में सफल नहीं हुए थी। 2022 में हुए विधानसभा चुनाव पर अगर नजर डाली जाए तो जातीय समीकरण के हिसाब से सिवालखास विधानसभा क्षेत्र में करीब एक लाख 16 हजार मुस्लिम, 60 से 70 हज़ार के करीब जाट, 48 हजार के करीब दलित, 30 हजार त्यागी-ब्राह्माण, 16 हजार गुर्जर, 16 हजार ठाकुर और लगभग 50 हजार में पाल, कश्यप, प्रजापति, सैनी, वाल्मिकि, जोगी आदि मतदाताओं के अलावा यहां करीब चार हजार यादव मतदाता भी हैं। अब अगर बात मौजूदा विधायक हाजी गुलाम मोहम्मद की करें तो सिवालखास विधानसभा सीट से वह वर्ष 2012 में सपा के सिंबल पर जीते थे। उस समय उन्होंने 3,587 वोट से रालोद के यशवीर सिंह को हराया था। उस समय बसपा के जगत सिंह तीसरे और भाजपा के समरपाल सिंह चौथे नंबर पर थे। उसके बाद सन 2017 के चुनाव में यहां भाजपा ने बाजी मारी थी।सिवालखास विधानसभा सीट से 2017 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के जितेंद्र सतवई जीते थे। इसके बाद सन 2022 के चुनाव में सपा रालोद का गठबंधन इस विधानसभा में कामयाब हो गया था। गठबंधन में सीट रालोद के खाते में जाने के बाद हाजी गुलाम मोहम्मद नल के चुनाव चिन्ह पर मैदान में उतरे थे। यहां पर पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के समय से चला आ रहा जाट-मुस्लिम फैक्टर गुलाम मोहम्मद के काम आया था। सपा के साथ गठबंधन के दम पर जहां रालोद का नल पानी उगलने में कामयाब रहा था। तो वहीं भाजपा का फूल मुरझा गया था। इस सीट पर गुलाम मोहम्मद ने 1,01,005 वोट हासिल किए थे। और भाजपा प्रत्याशी मनिंदरपाल को 91,510 वोट मिले थे। बसपा के मुकर्रम अली उर्फ नन्हे खातून को 29,386 वोट मिले थे। इनके अलावा कोई भी प्रत्याशी चार हजार वोट भी हासिल नहीं कर पाया था। गुलाम मोहम्मद ने भाजपा प्रत्याशी मनिंदरपाल सिंह को 9,495 वोट से हरा दिया था। अब सवाल उठता है कि क्या इस बार 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव में मौजूदा विधायक हाजी गुलाम मोहम्मद हैट्रिक लगाने में कामयाब होंगे कि नहीं ? क्योंकि 2024 के लोकसभा चुनाव में रालोद सुप्रीमों जयंत चौधरी के भाजपा खेमे में जाने के बाद इस बार के विधानसभा चुनाव में सिवालखास विधानसभा में जाट-मुस्लिम फैक्टर कितना कामयाब होगा ? और उनके द्वारा वक्फ बोर्ड संशोधन बिल का समर्थन करने के बाद मुस्लिम समुदाय के बीच रालोद को लेकर गुस्सा देखने को मिल चुका है। तो किसानों के मुद्दों पर जयंत चौधरी की चुप्पी के अलावा खुद विधायक गुलाम मोहम्मद के द्वारा ऐसे कई मामलों पर चुप्पी साथ लेना जैसे कि मोहम्मद साहब के बारे में की गई अभद्र टिप्पणी पर वह कुछ खास नहीं बोले और ना ही उन्होंने मुस्लिम समाज से जुड़े मेन मुद्दे वक्फ बिल संशोधन की कोई मुखालफत की बात कही।
इन मामलों ने कई बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। कि इस बार के विधानसभा चुनाव में सिवालखास विधानसभा से एनडीए द्वारा गुलाम मोहम्मद को प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतारा जाता है तो वहां मौजूद मुस्लिम वोटरों के अलावा दलित, यादव व अन्य समुदाय के लोग कितने प्रतिशत मतदान उनके पक्ष में करेंगे ? साहब के बारे में की गई अभद्र टिप्पणी पर वह कुछ खास नहीं बोले और ना ही उन्होंने मुस्लिम समाज से जुड़े मेन मुद्दे वक्फ बिल संशोधन की कोई मुखालफत की बात कही।
इन मामलों ने कई बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। कि इस बार के विधानसभा चुनाव में सिवालखास विधानसभा से एनडीए द्वारा गुलाम मोहम्मद को प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतारा जाता है तो वहां मौजूद मुस्लिम वोटरों के अलावा दलित, यादव व अन्य समुदाय के लोग कितने प्रतिशत मतदान उनके पक्ष में करेंगे ?