भारतीय ज्ञान प्रणाली का पुनर्जागरण: शोभित विश्वविद्यालय में वेद, उपनिषद, आयुर्वेद और गणित जैसे विषयों पर शोध की नई दिशा

 

मेरठ, 17 अगस्त। शोध-उन्मुख शैक्षणिक परंपराओं और सांस्कृतिक मूल्यों के लिए विख्यात शोभित विश्वविद्यालय ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के पाँच वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में एक और ऐतिहासिक पहल करते हुए भारतीय ज्ञान प्रणाली (आईकेएस) में पीएच.डी. कार्यक्रम की शुरुआत की है।

विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति एवं डीन रिसर्च प्रो. (डॉ.) जयानंद जी ने जानकारी साझा करते हुए बताया कि यह कार्यक्रम विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के दिशा-निर्देशों और भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा प्रोत्साहित भारतीय ज्ञान प्रणाली पहल के अंतर्गत विकसित किया गया है। इसका उद्देश्य भारतीय परंपराओं, दर्शन, विज्ञान, चिकित्सा, गणित, खगोल विज्ञान, कला, साहित्य और शासन-व्यवस्था जैसे विविध क्षेत्रों के अद्वितीय योगदानों का गहन शोध कर उन्हें वैश्विक पटल पर स्थापित करना है।

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री कुंवर शेखर विजेंद्र जी ने कहा—
भारतीय ज्ञान प्रणाली केवल हमारे अतीत की गौरवशाली धरोहर नहीं है, बल्कि यह आधुनिक भारत के उज्ज्वल भविष्य की आधारशिला भी है। शोभित विश्वविद्यालय का यह प्रयास राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की आत्मा के अनुरूप है, जो परंपरा और आधुनिकता के बीच संतुलन स्थापित करता है। भारतीय ज्ञान प्रणाली भारत की हजारों वर्षों की बौद्धिक यात्रा का जीवंत प्रतीक है— इसमें वेदों की आध्यात्मिक गहराई, उपनिषदों की दार्शनिक दृष्टि, आयुर्वेद और योग का स्वास्थ्य विज्ञान, गणित एवं खगोल विज्ञान की वैज्ञानिक परंपरा, और कला एवं साहित्य का सांस्कृतिक वैभव सम्मिलित है। यह एक समग्र और सतत ज्ञान-व्यवस्था है, जो आज भी आधुनिक समाज और विज्ञान को दिशा प्रदान कर सकती है। शोभित विश्वविद्यालय का यह पीएच.डी. कार्यक्रम शोधार्थियों को इस अमूल्य धरोहर का वैज्ञानिक अध्ययन करने, उसके समकालीन महत्व को समझने और वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने का अद्वितीय अवसर प्रदान करेगा।

कुलपति प्रो. (डॉ.) वी. के. त्यागी ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि शोध ही किसी राष्ट्र की प्रगति का वास्तविक मार्ग है। भारतीय ज्ञान प्रणाली में प्रारम्भ किया गया यह पीएच.डी. कार्यक्रम हमारे विद्यार्थियों और शोधार्थियों को भारतीय परंपरा को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने और विश्व पटल पर प्रस्तुत करने का सशक्त अवसर प्रदान करेगा।”
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के सभी निदेशक, डीन और सभी संकाय सदस्य उपस्थित रहे और इस पहल का समर्थन करते हुए इसे विश्वविद्यालय की एक सशक्त और दूरदर्शी पहल बताया।

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