अरविन्द केजरीवाल की राजनीति
वर्ष 2011 में भ्रष्टाचार के विरूद्ध दिल्ली के रामलीला मैदान में सम्पन्न हुए अन्ना आन्दोलन ने अरविन्द केजरीवाल जी के मस्तिष्क में राजनीति के अंकुर का रोपण कर दिया। अरविन्द केजरीवाल जी वैश्य जाति के हैं और दिल्ली में वैश्य जाति की बहुलता है, अतः उन्होंने दिल्ली से ही अपनी राजनीतिक पारी आरम्भ करने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने भावी राजनैतिक जीवन में सफलता प्राप्त करने हेतु वैश्य, मुस्लिम एवं समाज के वंचित वर्ग के लोगो को अपना मुख्य सहयोगी बनाने के लिए एक चक्रव्यूह की रचना की जिसमें वह पूर्ण रूप से सफल हुए और भारत की राजधानी दिल्ली के प्रथम वैश्य मुख्यमंत्री के रूप में सुशोभित हो गए। उनको वैश्य जाति का भरपूर सहयोग प्राप्त हुआ था।
यद्यपि अरविन्द केजरीवाल जी राजनीति के अल्पज्ञानी थे, फिर भी दिल्ली के सिंहासन पर पदासीन होने के घमंड के कारण उनका अपनी अभिव्यक्ति पर नियंत्रण नहीं था अर्थात् जब भी वे किसी सार्वजनिक मंच पर अपने विचार अभिव्यक्त करते थे तो उनके मुख से सदैव ही अपने विरोधी नेताओं के लिए अमर्यादित शब्दों का अत्यधिक प्रयोग होता था। उनकी इस वाचालता का एक कारण यह भी था कि उनको दिल्ली प्रदेश की सत्ता प्राप्त करने में बहुत अधिक प्रयास नहीं करना पड़ा, इसी कारण उनकी महत्वाकांक्षाएँ नित्प्रतिदिन बढ़ती गई और अब उनको यह आभास होने लगा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री आवास तथा प्रधानमंत्री आवास के मध्य की दूरी अत्यधिक नहीं है, उसको अल्प प्रयास से ही प्राप्त किया जा सकता है।
समय के साथ-साथ उनका आत्मविश्वास भी अत्यधिक ऊचाई पर पहुँचने लगा और वे अब दिल्ली के साथ-साथ पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात तक अपना राजनीतिक वर्चस्व स्थापित करने के विषय में सोचने लगे। केजरीवाल जी को यह अनुमान था कि जिस प्रकार दिल्ली के वैश्यों ने उनका साथ दिया, उसी प्रकार अन्य प्रदेशों का भी वैश्य समाज उनका साथ देगा, इस प्रकार की सोच रखना आज के राजनैतिक वातावरण के अनुसार भी थी, परन्तु अन्य राज्यों में यह वैश्य कार्ड इतना सफल नहीं हो सका। परिणामस्वरूप पंजाब के अतिरिक्त अन्य प्रदेशो की जनता ने उनके नेतृत्व को वृहद रूप में नहीं स्वीकारा। अरविन्द केजरीवाल जी को पंजाब राज्य में सत्ता प्राप्त करने का जो सुख प्राप्त हुआ, उसका पूर्ण श्रेय उनको न जाकर, वर्ष 2021 में कृषि कानून के विरूद्ध हुए किसान आन्दोलन को जाता है, जिसमें उन्होंने दिल्ली में एकत्र हुए पंजाब के किसानो की उन्मुक्त भाव से सहायता की। फलस्वरूप दिल्ली में एकत्रित पंजाब के किसानों में उनके प्रति श्रृद्वा का भाव जाग्रत हुआ और उन्हें वहाँ की राजगद्दी पर पदासीन कर दिया।
पंजाब राज्य में सत्तासीन होने के पश्चात उनका अपनी जिह्वा पर नियंत्रण और भी समाप्त हो गया और उन्होंने मोदी जी के विरूद्व अमर्यादित शब्दों का प्रयोग करना प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने ऐसा करते हुए यह कदापि चिंतन नहीं किया कि मोदी जी मात्र एक साधारण व्यक्ति नहीं अपितु भारत के प्रधानमंत्री हैं और 140 करोड़ जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं जबकि अरविन्द केजरीवाल मात्र 3 करोड़ 40 लाख जनसंख्या का ही प्रतिनिधित्व करते हैं।
वर्तमान में अरविन्द केजरीवाल जी अपने त्रुटिपूर्ण कार्यकलापों के कारण ईडी की पूछताछ हेतु हिरासत में हैं। एक मुख्यमंत्री का अपने कार्याकाल के अन्तराल में ही कारावास में चला जाना – भारत में एक नवीन इतिहास का सृजन करता है। अब सम्पूर्ण देश में इस ज्वलंत विषय पर चर्चा हो रही है कि क्या एक मुख्यमंत्री को कारावास में रहकर अपने मुख्यमंत्री पद एंव उस पद से सन्निहित कार्यो का निर्वाह करने की अनुमति है अथवा नहीं क्योंकि इस परिस्थिति का संविधान में कहीं भी वर्णन नहीं हुआ है। अरविन्द केजरीवाल जी के इस प्रकरण से भावी युवा राजनेताओं को अपनी राजनीतिक सफलता हेतु यह सीख अवश्य ही लेनी होगी कि एक राजनीतिज्ञ को सार्वजनिक मंच से कोई भी वक्तव्य देते समय अपनी जिव्हा पर पूर्ण नियन्त्रण रखना चाहिए अन्यथा केजरीवाल जी के सदृश अन्य उदाहारण भी हमारे समक्ष उपस्थित होते रहेंगे।
*योगश मोहन*