अमेरिका के विषय में यदि गहनता से विचार किया जाए तो, अब तक भारत में सरकार किसी भी दल की रही हो, उसके द्वारा यही प्रयास किया जाता रहा है कि अमेरिका से मित्रतापूर्ण संबंध बने रहे। उसका कारण यह भी है कि भारत और अमेरिका के मध्य बहुत बड़े स्तर पर व्यापार होता है, जो कि निरन्तर प्रगतिशील है, परन्तु भारत को जब-जब अमेरिका की आवश्यकता पड़ी है, चाहे वर्ष 1971 हो अथवा वर्ष 2025 का आपरेशन सिंदूर हो, उसने भारत के स्थान पर पाकिस्तान का ही साथ दिया है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प, मोदी जी को अपना घनिष्ठ मित्र बताते हैं, परन्तु उन्होंने मैत्रीय संबंधो को अनदेखा करके भारतीय वस्तुओं पर 33 प्रतिशत टैरिफ लगाने का आदेश पारित कर दिया, जोकि भारतीय निर्यात के लिए बहुत बड़ा झटका है। यह टैरिफ हमारे उद्योग जगत के लिये चिंता का विषय है। उसके साथ-साथ ही ट्रम्प ने एक ओर भविष्यवाणी कर दी कि निकट भविष्य में पाकिस्तान के समुद्र में से तेल की खोज करके, उसे विश्व का सबसे बड़ा तेल भंडार बनाएगे। चूंकि, भारत, ईरान और रूस से बड़ी मात्रा में तेल का आयात करता है तो भारत को तेल के लिए विवश होकर पाकिस्तान पर निर्भर होना पड़ेगा। भारत-पाक सिंदूर आपरेशन के समय, ट्रम्प ने दावा किया था कि उसने युद्ध विराम कराया, यह एक भ्रामक तथ्य है, जिसका हमारे प्रधानमंत्री जी ने संसद में भी स्पष्टीकरण दिया कि युद्ध विराम किसी के दबाव में आकर नहीं किया गया।
ट्रम्प, अब भारत से व्यापारिक समझौते करना चाहते है। उनकी इच्छा है कि अमेरिकी कम्पनियाँ अनाज और दूध, भारत को निर्यात करें। ऐसा होने पर हमारे किसान को अत्यधिक आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ सकता है। अमेरिका चाहता है कि हम, रूस से तेल का क्रय ना करें, जबकि रूस हमको तेल सस्ते दाम पर और भारतीय मुद्रा में दे रहा है। इसको मोदी जी किसी भी शर्त पर स्वीकार नहीं करेंगे। दूसरी ओर, अमेरिकी की पाकिस्तान से घनिष्ठता बढ़ती जा रही है और ट्रम्प ने पाकिस्तान पर जो टैक्स लगाया है, वह अन्य देशो की अपेक्षा कम, अर्थात् मात्र 17 प्रतिशत ही है। पाकिस्तान ने भी नोबल पुरस्कार हेतु डोनाल्ड ट्रम्प के नाम का अनुमोदन किया है। इससे यह तो निश्चित हो जाता है कि अमेरिका और पाकिस्तान के मध्य भारत के विरुद्ध अवश्य ही कोई कूटनीति की जा रही है। भारत 145 करोड़ की जनसंख्या वाला देश है तथा विश्व का सबसे वृहद व्यापारिक स्थल है। अमेरिका की 1000 से भी अधिक कम्पनियाँ भारत में अपना व्यापार कर रही है। भारत को अमेरिका के प्रति अपना रूख कठोर करना होगा। यदि इन कम्पनियों को भारत में व्यापार बंद करने की आवाज उठनी प्रारम्भ हुई, तो ये कम्पनियाँ ट्रम्प पर अपना दबाव बनाना प्रारम्भ कर देगीं। अमेरिका को, भारत से अपने संबंध खराब करने पर अथ्यधिक हानि उठानी पड़ सकती है। यदि ऐसा होता है तो यह स्थिति अमेरिका व उसके नेतृत्व ट्रम्प के लिए भी असहनीय होगी। भारत को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प की धमकियों में आने की आवश्यकता नहीं है। भारतीय नागरिको को जब-जब देशहित में त्याग करने की आवश्यकता हुई, तो उसने देश पर अपना सर्वस्व न्यौछावर किया है। अब भी यदि देशहित के लिए भारतीयों को अमेरिका वस्तुओं का त्याग करना पड़ा, तो वे निश्चितः इसके लिए तत्पर रहेंगे। ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है।
योगेश मोहन