सोशल मीडिया संवाद का सशक्त और परिवर्तनकारी माध्यम
लेखक: सुरेन्द्र शर्मा, पूर्व सूचना अधिकारी
मीडिया को लोकतंत्र की आँख, नाक और कान कहा जाता है — वह जो देखता है, सुनता है और महसूस करता है, वही जनता तक पहुंचाता है। समय के साथ माध्यम बदले, लेकिन उद्देश्य वही रहा — जनता की समस्याओं को सामने लाना और समाधान की ओर ले जाना।
अगर हम इतिहास की ओर नजर डालें, तो पाते हैं कि मीडिया का स्वरूप शुरू से ही समाज के स्वर और संवेदना से जुड़ा रहा है। जब तकनीक नहीं थी, तब भजन, रागनी, कठपुतलियाँ, लोकगीत और कव्वालियाँ जन-संवाद का माध्यम थीं। यही पारंपरिक विधाएं संदेशवाहक बनकर गाँव-गाँव में चेतना की मशाल जलाती थीं। पर जैसे-जैसे विज्ञान ने तरक्की की, तकनीक ने पुराने तरीकों को पीछे छोड़ दिया। तब आए समाचार पत्र — जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम से लेकर लोकतांत्रिक चेतना तक अपनी प्रभावशाली भूमिका निभाई। एक शाम भेजा गया समाचार अगली सुबह करोड़ों लोगों तक विचार बनकर पहुँचता था।
इसके बाद रेडियो और फिर टेलीविजन ने दृश्य और श्रव्य माध्यमों की दुनिया में क्रांति ला दी। पर 21वीं सदी ने एक और सशक्त परिवर्तन देखा — सोशल मीडिया का। यह न केवल सबसे तेज और सबसे सस्ता माध्यम है, बल्कि इसकी पहुँच वैश्विक है और असर तात्कालिक।
आज सोशल मीडिया ने दुनिया को एक “ग्लोबल विलेज” बना दिया है। एक मोबाइल और इंटरनेट कनेक्शन के माध्यम से आज हर व्यक्ति रिपोर्टर है, हर घर स्टूडियो है, और हर विचार — आंदोलन बनने की क्षमता रखता है। चाहे फेसबुक हो, इंस्टाग्राम हो, यूट्यूब हो या ट्विटर — यह सभी मंच अब सिर्फ मनोरंजन नहीं, संवाद, विरोध और जन-चेतना के औजार बन चुके हैं।
आज सोशल मीडिया पर कोई भी व्यक्ति — जिसे मोबाइल और इंटरनेट चलाना आता है — बिना किसी की मदद के अपनी बात को सरकार, समाज और दुनिया के किसी भी कोने तक पहुंचा सकता है। फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम जैसे मंचों ने संवाद की परिभाषा ही बदल दी है।
इसी क्रम में मेरठ के एक दैनिक समाचार पत्र के संपादक रवि कुमार बिश्नोई का उल्लेख करना भी ज़रूरी है। पढ़ाई-लिखाई में सीमित संसाधन होने के बावजूद उनकी दृष्टि बहुत तेज़ है। उन्होंने सोशल मीडिया की बढ़ती अहमियत को समझते हुए एक सोशल मीडिया संगठन की नींव रखी है, जो आम लोगों को जोड़कर उन्हें जागरूक और सशक्त बना रहा है। उनका मानना है कि आम नागरिक इस मंच के ज़रिए सीधे उच्च स्तर तक अपनी बात पहुँचा सकता है — और यह सच भी है।
आज मीडिया की दौड़ में सोशल मीडिया सबसे आगे निकल चुका है। यह वह माध्यम है जो न केवल आवाज़ उठाता है बल्कि असर भी पैदा करता है।
जैसा कहा गया है —
“देखन में छोटे लगे, घाव करें गंभीर” — यही सोशल मीडिया की ताक़त है।
इतिहास में भी इसका असर देखा गया है। एक उदाहरण याद आता है — जब भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय अमेरिका के राष्ट्रपति ने सोशल मीडिया के माध्यम से युद्धविराम की घोषणा की, और वह खबर पलक झपकते ही पूरी दुनिया में फैल गई।
इसलिए यदि कहा जाए कि —
“सोशल मीडिया जनता के लिए, जनता की आवाज़ और जनता तक सीधा संवाद है”,
तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं, बल्कि आज का यथार्थ है।
यह वह माध्यम है जो बिना किसी देरी के न केवल समस्याएं उठाता है, बल्कि समाधान की दिशा में भी ठोस रास्ता खोलता है।
मेरठ से संचालित TazaKhabar.com भी इस डिजिटल क्रांति का एक महत्वपूर्ण नाम है। जहाँ पारंपरिक अखबारों की सीमाएं हैं, वहाँ TazaKhabar.com अपने तीखे सवालों और जमीनी रिपोर्टिंग से आम जनता की आवाज़ बन रहा है। दोनों ही प्लेटफॉर्म — Political Adda और Taza Khabar — सोशल मीडिया के ज़रिए आम लोगों को मंच और माइक दे रहे हैं।
मेरठ के पत्रकार और संपादक रवि कुमार बिश्नोई ने सोशल मीडिया की ताकत को समय रहते पहचाना और एक सोशल मीडिया संगठन का गठन कर युवाओं और आम नागरिकों को जोड़ने का प्रयास किया। उनका मानना है — “हर व्यक्ति अब संवादकर्ता है, उसे बस अपनी बात रखने का साहस चाहिए और एक नेटवर्क चाहिए जो सुने और उठाए।”
आज यह देखना सुखद है कि देश के प्रधानमंत्री से लेकर विपक्ष के नेता तक, सभी सोशल मीडिया की ताकत को स्वीकार चुके हैं। चुनावी अभियान हो, नीति निर्माण हो या जन संवाद — हर मोर्चे पर सोशल मीडिया निर्णायक भूमिका निभा रहा है।
यहाँ तक कि युद्ध जैसे संवेदनशील मुद्दों में भी इसका असर देखा गया है। एक उदाहरण याद आता है, जब भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अमेरिका के राष्ट्रपति ने सोशल मीडिया के ज़रिए युद्धविराम की घोषणा की — और वह बात कुछ ही मिनटों में पूरी दुनिया में फैल गई।
तो अगर आज कहा जाए कि —
“सोशल मीडिया जनता के लिए, जनता के द्वारा, और जनता तक सीधा संवाद है”,
तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं, एक यथार्थ है।
यह माध्यम न केवल सवाल उठाता है, बल्कि जवाब लेने की क्षमता भी रखता है। यह समाधान की दिशा में पहला और अक्सर निर्णायक कदम साबित हो रहा है। ऐसे में हमें न केवल इस माध्यम को अपनाना है, बल्कि इसे ज़िम्मेदारी से इस्तेमाल कर संवाद को सशक्त
इस माध्यम की ताकत का ताज़ा उदाहरण है — बागपत जनपद का बूढ़पुर गाँव। इस गाँव में वर्षों से दूषित पानी और गंभीर बीमारियों की समस्या थी, और लोग धीरे-धीरे अपनी जान गंवा रहे थे। लेकिन जब इस मुद्दे को मुख्यधारा मीडिया ने नजरअंदाज किया, तब सोशल मीडिया सामने आया।
PoliticalAdda.com न्यूज़ पोर्टल और यूट्यूब चैनलों — Dr. Ravindra Rana, Save India News, और Ground Zero Politics — ने इस मुद्दे को ज़ोरदार ढंग से उठाया। इन प्लेटफॉर्मों के संचालक डॉ. रवीन्द्र राणा और पत्रकार राजेश शर्मा हैं। इनके निरंतर प्रयासों से प्रशासन की नींद टूटी, टीमों का दौरा हुआ, और समाधान की दिशा में पहली बार ठोस कदम उठे। गाँव में उम्मीद की किरण जगी है। वर्षों से रमाला चीनी मिल की वजह से वहाँ के लोग दूषित पानी और बीमारी से जूझ रहे थे। प्रशासनिक उदासीनता और व्यवस्था की चुप्पी के बीच, एक यूट्यूब चैनल PoliticalAdda.com ने जब इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया, तो समस्या ने मीडिया से होते हुए शासन-प्रशासन की मेज तक दस्तक दी। देखते ही देखते, वर्षों पुरानी समस्या का समाधान निकलने लगा। यह सोशल मीडिया की ताकत है — घाव छोटा दिखे, असर गहरा करे।
आज जब समाज तेजी से बदल रहा है और सूचना क्रांति अपने चरम पर है, तब सोशल मीडिया केवल संवाद का नहीं, बदलाव का माध्यम बनकर उभरा है। यह वह ताकत है जो एक सामान्य व्यक्ति को भी अपनी बात कहने, अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने और व्यवस्था को जवाबदेह बनाने का अवसर देती है।
जब पारंपरिक मीडिया संसाधनों या दबावों के कारण पीछे हटता है, तब सोशल मीडिया जनता की आँख और ज़ुबान बन जाता है। गाँव, कस्बे, हाशिए पर खड़े लोगों की आवाज़ अब छुपी नहीं रहती — वह सीधे सत्ता और समाज के सामने आती है।
हाल के उदाहरणों ने यह स्पष्ट किया है कि यदि सोशल मीडिया का प्रयोग जिम्मेदारी, ईमानदारी और संवेदनशीलता के साथ किया जाए, तो यह प्रशासन को झकझोर सकता है, नीतियों में बदलाव ला सकता है और वर्षों से उपेक्षित समस्याओं को समाधान तक पहुँचा सकता है।
अब यह केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि जनहित का सबसे सक्रिय और प्रभावशाली मंच बन चुका है। आवश्यकता बस इतनी है कि हम इसका उपयोग सोच-समझकर करें — अफवाहों से बचें, सूचनाओं की पुष्टि करें, और इसे सत्य, जनहित और समाज-निर्माण के उद्देश्य से अपनाएँ।
इस दौर में सोशल मीडिया एक नई क्रांति की शुरुआत है — जहाँ हर व्यक्ति एक संभावित पत्रकार है, और हर फोन एक संभावित आंदोलन का मंच।
