बीते शुक्रवार यानि 2 मई को भारतीय रक्षा सम्पदा सेवा से स्वैच्छिक सेवा-निवृत्ति के अवसर पर विभागीय विदाई समारोह तो यादगार था ही, परंतु कार्यालय को हमेशा के लिए छोड़ते वक्त हमारे विंग के चतुर्थवर्गीय सहयोगियों द्वारा स्मृति-चिह्न गिफ्ट किया जाना सच में दिल छूने जैसा था!!
साथियों,
हर्ष के साथ सूचित करना चाहता हूँ कि 2 मई, 2025 को मैंने भारतीय रक्षा सम्पदा सेवा (सिविल सेवा, 1997 बैच) की प्रतिष्ठित सेवा से स्वैच्छिक सेवा-निवृत्ति ले ली है; वास्तविक सेवा-निवृत्ति की निर्धारित तिथि 31, जनवरी 2028 को बिना किसी राग-विलास कष्ट-क्रोध के निजी कारणों से स्वयं ही घटाकर 02 मई, 2025 पर पूर्ण विराम लगाते हुए। इस सेवा से पहले 22.01.1990 को मात्र 22 वर्ष 7 दिन की उम्र में (यहाँ-वहाँ ऐसा-वैसा अच्छा-बुरा करने के दिनों में) बिहार सरकार की सेवा में राजस्व कर्मचारी (लेखपाल) की नौकरी धर ली थी; फिर सहायक शिक्षक और सचिवालय सहायक के रूप में 19.09.1997 तक बिहार के विभाग-भूभाग में बिना किसी लालच-लोचा के सत्यनिष्ठा के साथ कर्तव्यों का पालन किया। रक्षा सम्पदा सेवा के लंबे कार्यकाल में मैंने मुख्य अधिशासी अधिकारी शाहजहाँपुर छावनी (सितंबर 1998 से जुलाई 2000) मु.अ.अ. रामगढ़ छावनी (अगस्त 2000 से अगस्त, 2003) मु.अ.अ. रानीखेत छावनी (सितंबर 2003 से अप्रैल 2007), रक्षा सम्पदा अधिकारी, बरेली वृत्त (अप्रैल, 2007 से अप्रैल, 2010), र.स.अ. आगरा वृत्त (अप्रैल, 2010 से जून, 2013), मु.अ.अ. मेरठ छावनी (जून, 2013 से जून, 2015 ), र.स.अ. पुणे वृत्त (जुलाई, 2015 से फरवरी, 2016), मु.अ.अ. पुणे छावनी (अक्टूबर, 2016 से जून, 2019) और निदेशक, रक्षा संपदा, मध्य कमान (जुलाई, 2019 से 02 मई 2025) के रूप में अपने कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक निर्वहन किया। 35 वर्ष 3 माह 10 दिन की लम्बी सेवा अवधि के बाद रक्षा सेवा को सलाम करते हुए मैंने सरकारी सेवा को पूर्ण आत्मविश्वास के साथ अलविदा कह दिया है; जन-जन के साथ करीब से जुड़ जाने के एक बड़े उद्देश्य के साथ। यह गर्वोक्ति नहीं बल्कि सच है कि मैंने हमेशा सरकार हित में और क़ानून के हक़ में पूर्णत: भयरहित होकर कार्य किया; निर्धारित लक्ष्यों/ कार्यों को अंजाम/तार्किक परिणति तक पहुँचाने के दरम्यान मैं डी.एन. यादव नहीं बल्कि अपने पद का एक ईमानदार प्रतिनिधि होता था। रक्षा भूमि व संपत्ति का नाजायज़ दोहन करने वाले बड़े-बड़े सूरमाओं से टकराने और उन्हें हर मोर्चे पर पटखनी देने के दौरान मेरे क़दम कभी पीछे नहीं हटे। क़ानून पालनार्थ समर में उतारे जाने की यह एक छोटी बानगी भर रहा है कि मेरठ छावनी में अवैध रूप से संचालित शराब की सभी 20 दुकानों को मैंने एक दिन में ही ज़मींदोज करवा दिया था; बिना इस बात का परवाह किए कि ऐसे संगठित गिरोह मुझ पर कभी भी गोली बरसा सकते हैं। अतिक्रमण / ध्वस्तीकरण के ऐसे सैकड़ों उदाहरण उन स्टेशनों के सरकारी रिकॉर्ड में अमर होकर दर्ज़ हैं। दावा नहीं, सच है कि ऐसे मामलों में मुझे 99% सफलता मिली। मुझे अपने पर गर्व है कि उपरोक्त सारे स्टेशनों में ग़ैर क़ानूनी काम करने/कराने वालों में से कोई भी शख़्स किसी भी रूप में मुझे न तो प्रभावित कर पाया और न ही किसी भी रूप में मुझे खरीद पाया। इन सारे स्टेशनों में मेरे द्वारा कार्यान्वित विकास गाथा की फ़ेहरिस्त भी लंबी है, जिसे उल्लिखित करना डिंग हांकने जैसा लग सकता है।
यह विश्वास योग्य नहीं है कि मैं कभी ख़ुद पर केंद्रित नहीं रहा बल्कि सरकारी हित और पद की अथॉरिटी स्थापित करने में मगन रहा; और जिस पर गर्व करते हुए मैं पूर्ण संतुष्टि व आत्मविश्वास के साथ मैंने विभाग से विदाई ली है। उन सारे कार्यालयों के कर्मियों-सहयोगियों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए मुझे डिक्शनरी में कोई शब्द नहीं मिल रहे हैं; सच में मेरे सारे सफल कार्यों के पीछे हक़ीक़त में हमारे वे सहयोगी ही असली ताक़त तथा कारक रहे हैं। उन सभी को याद करते हुए मैं भावुक हो रहा हूँ। फ़िलहाल कागज़ के मात्र एक पन्ने के माध्यम से उनके प्रति कृतज्ञता प्रेषित किया है; भविष्य में जब भी उन छावनियों में जाने के अवसर प्राप्त होंगे, उन सभी को सामने से सलाम करके मुझे अपार संतुष्टि मिलेगी। रक्षा सम्पदा विभाग के प्रति आजीवन शुक्रगुज़ार रहने के एक बड़े कारक का उल्लेख आज मुझे जरुर करना चाहिए। माँ सरस्वती की कृपा ही कहिए कि, तत्कालीन प्रधान निदेशक के साथ रानीखेत छावनी में दिनांक 28.10.2008 को पद-अनुकूल कदम उठाने के दौरान मेरे बायें घुटने का घोर अस्थि-भंजन घटित हो गया था, सालभर में दो बड़े ऑपरेशन कराने पड़े और जिस कारण मुझे साल भर आवास व कार्यालय तक ही क़ैद रहना पड़ा; इसी दौरान मेरे अन्दर दबे पड़े साहित्य को प्रस्फुटित होने का अवसर प्राप्त हुआ। और जिसका फलाफल कुछ यूँ हैं कि अबतक मेरी लिखी 67 मौलिक कहानियाँ हिन्दी साहित्य की सभी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं और उन कहानियों के चार संग्रह नामचीन प्रकाशन समूह ‘किताबघर’ नई दिल्ली से प्रकाशित हैं। 832 पृष्ठों वाला मेरा पहला उपन्यास “रामघाट में कोरोना” वर्ष 2023 में किताबघर से प्रकाशित हुआ है, जिसे हिंदी साहित्य जगत में कोरोनाकालीन महागाथा मानी जाने लगी है। रियल इस्टेट की अंदरूनी दुनियां की अदृश्य परतों को खोलने वाला मेरा दूसरा मौलिक उपन्यास “अधभूतल छियानबे” का विमोचन (प्रलेक प्रकाशन) आगामी महीनों में कभी होना है। समकालीन भारतीय साहित्य (साहित्य अकादमी) में प्रकाशित मेरी कहानी “यारसा गम्बू” काफी चर्चित रही है तथा शिक्षा निदेशालय, दिल्ली द्वारा पर्यावरण आधारित कहानी संकलन “आधा पेड़ आधे हम” में सम्मिलित की गई है। मेरे लिए हर्ष का विषय है कि वर्ष 2014 में पाखी पत्रिका में प्रकाशित कहानी “रानीखेत हो आइये महाराज” रवींद्र नाथ टैगोर विश्वविद्यालय, भोपाल द्वारा वर्ष 2021 में हिन्दी साहित्य के 200 वर्षों की कथा यात्रा पर संकलित कहानी संकलन “कथा देश” में सम्मिलित की गई है। मेरे द्वारा लिखित शोधपरक ग्रंथ “प्राचीनकालीन भारतीय सैन्य व्यवस्था” प्राचीन भारत की वीर-गाथा से नई पीढ़ी को गौरवशाली शैली में अवगत कराता है। नई धारा रचना सम्मान, 2023, साहित्यश्री सम्मान, 2023, किस्सा-कोताह कथा सम्मान, 2024 एवं इण्डिया नेटबुक्स कथा-रत्न सम्मान, 2025 से सम्मानित हो जाने पर मैं कतई नहीं इतरा रहा हूँ। कहानी “रानीखेत हो आइये महाराज” अपने विभाग के प्रति मेरी एक स्थायी कृतज्ञता है, जो रक्षा सम्पदा के कार्यों की महत्ता व इस सेवा के नैतिक मूल्यों पर आधारित है। कथा-साहित्य में रुचि रखने वाले इस कहानी को मेरे पुराने पोस्ट में पढ़ सकते हैं।
साथियों, मै ज्यादा ज्ञानवान नहीं हूँ पर अन्दर एक एहसास ज़िंदा है कि किसी भी मनुष्य के जीवन की सार्थकता उसके ‘जीवन-दर्शन व दृष्टि’ की परिपक्वता है। मनुष्य को विगत काल से सीख जरुर लेनी चाहिए पर मुड़-मुड़कर पीछे नहीं देखना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से आगे के रास्ते धुंधले दिखने लगते हैं। ईमानदारीपूर्वक दिल से बोलना चाह रहा हूँ, कि मेरे अंदर किसी भी मनुष्य के लिए किसी भी प्रकार का ईर्ष्या-द्वेष, घृणा-घर्षण नहीं रहा और संपूर्णतः निरपेक्ष होकर व घनघोर अस्तित्ववादी बनकर जीवन का आनंद लेते रहना मुझे भाता रहा है; इसके पीछे मुख्य वज़ह शायद यही है कि महात्मा बुद्ध के दर्शन “तृष्णा ही दुःख का कारण है” (जिसे मानव सभ्यता का सबसे पहला और सबसे बड़ा दर्शन माना जाता है) मेरे वायु-स्नायु में समाहित है। मुझे ख़ुशी है कि मैंने अपने गृहिक कारणों से परिवार हित में स्वैच्छिक सेवा-निवृत्ति ली है; पर साहित्य के अतिरिक्त अब अचानक एक बिल्कुल नई पारी की शुरुआत होती दिख रही है, जिसे समय-समय पर मैं अपने साथी शुभचिंतकों के साथ साझा करता रहूँगा।
मैं दिल से रक्षा सेवा का ऋणी रहूँगा जिसने मेरे व्यक्तित्व को व्यापक बनाया तथा जिसने मेरी आत्मा को साधारण बनाने में सर्वाधिक योगदान दिया है; और सच में साधारण हो जाने को मैं अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि मानता हूँ।
जय हिन्द जय