दुश्मन से बदला – युद्ध ही केवल विकल्प नहीं, योगेश मोहन

अतीतकाल से ‘युद्ध‘ शब्द का जब भी प्रयोग हुआ है, उसमें जनता को भयंकर परिणामों का सामना करना पड़ा। युद्ध शब्द उच्चारण में जितना सूक्ष्म है, उसका अभिप्राय उतना ही कष्टप्रद होता है। इसके उदाहरणस्वरूप हम रूस-यूक्रेन व इजराइल-फिलस्तीन युद्ध के रूप में देख चुके हैं। इसके इतर जब दोनों देश ही परमाणु अस्त्रों की शक्ति से सम्पन्न हों तो, युद्ध के परिणाम किस देश को अधिक त्रस्त करेंगे यह कहना कठिन होगा।
धरती का स्वर्ग, अर्थात् कश्मीर घाटी में स्थित पहलगाम में घटित आतंकी हमले से, सम्पूर्ण देश की जनता में आक्रोश व्याप्त हुआ है। सम्पूर्ण भारत देश इतने गम्भीर आघात के पश्चात भी मोदी जी से अनेकों अपेक्षाओं के साथ, उनके द्वारा दिए आश्वासन पर पूर्णतया विश्वास करके, उनके समर्थन में खड़ा है। हम भारतीयों को गर्व है कि हमारे माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी कोई भी निर्णय भावुकता के साथ नहीं लेते अपितु उसपर पूर्ण विवेक के साथ विचार मंथन करके, उसके दूरगामी परिणामों को दृष्टिगत करते हुए ही कोई निर्णय लेते हैं।
भारत देश के नागरिकों पर इस प्रकार का आक्रमण करने से पूर्व दुश्मन देश को यह विस्मृत नहीं करना चाहिए कि भारत के प्रत्येक नागरिक में देशभक्ति की भावना कूट-कूटकर भरी है और भारत माता की रक्षा हेतु भारत का प्रत्येक नागरिक अपना सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए तत्पर रहता है।
पहलगाम हमले के पश्चात प्रधानमंत्री मोदी जी ने अतिशीघ्र पाकिस्तान के साथ हुए ‘सिंधु जल समझौते‘ को निरस्त कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप कुछ ही समय में पाकिस्तान की जनता तीक्ष्ण गर्मी के मौसम में पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसेगी। इसी के साथ-साथ एक अन्य कठोर निर्णय भी लिया गया है, जिसमें भारत द्वारा अटारी बोर्डर को भी बंद कर दिया गया है। अब अटारी बोर्डर से भारत के द्वारा दैनिक आवश्यकता के खाद्य पदार्थ, यथा – आलू, प्याज आदि अथवा अन्य आवश्यकताओं के निर्यात पर रोक का परिणाम यह हुआ है कि पाकिस्तान में इन सभी के मूल्यों में अत्यधिक वृद्धि हो चुकी है और सम्पूर्ण पाकिस्तान की जनता हाहाकार कर रही है। इसके अतिरिक्त भारत में विभिन्न उद्देश्यों से आए हुए पाकिस्तानी नागरिकों को भारत से निकाला जा चुका है। साथ ही मातृभूमि की रक्षा हेतु भारतीय सेना को भारत-पाक सीमा की ओर जाने का आदेश दे दिये गए हैं और फौज के कंमाडरों को उपयुक्त समय पर अपने विवेक से निर्णय लेने की स्वतंत्रता दे दी गई है। भारत ने और भी छोटे बड़े कदम उठाये हैं, जोकि प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से वहाँ की जनता को असुविधा में डालने के लिए पर्याप्त हैं ।
एक कुशल नेतृत्व की पहचान इसी से होती है कि वह जो भी निर्णय ले, उससे शत्रु पूर्णतया नष्ट हो जाए और स्वयं को किसी भी प्रकार की हानि का सामना न करना पड़े। माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी, यह भली-भांति समझते हैं कि देशहित में और क्या निर्णय लेनें होंगे, जिससे शत्रु का मर्दन भी हो जाए और भारत को भी किसी प्रकार की हानि न हो। अर्थात् सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे।
इस विकट परिस्थिति के विपरीत जनता से यह अपेक्षा की जाती है कि वह शत्रु को अपने उद्देश्यों में सफल न होने दें अर्थात् उनकी अपेक्षा के अनुरूप भारतीय जनता कश्मीर भ्रमण को भयभीत होकर बंद न करें। अब भारतीय पर्यटको का कर्तव्य है कि वे साहस के साथ शत्रु की अपेक्षाओं को नष्ट करें। हमें शत्रु को यह दिखाना है कि उसकी कायरतापूर्ण गतिविधियों के पश्चात भी स्वर्गस्वरूप कश्मीर घाटी में सबकुछ सामान्य ही है। शत्रु के उद्देश्य का पूर्णतया विफल होना ही भारत देश की बहुत बड़ी विजय होगी।

योगेश मोहन

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