कुँवर शेखर विजेंद्र एशिया और प्रशांत क्षेत्र के विश्वविद्यालयों के संघ (एयूएपी) की सलाहकार परिषद के सदस्य मनोनीत

कुँवर शेखर विजेंद्र एशिया और प्रशांत क्षेत्र के विश्वविद्यालयों के संघ (एयूएपी) की सलाहकार परिषद के सदस्य मनोनीत

शोभित सम विश्वविद्यालय, मेरठ के सह-संस्थापक और कुलाधिपति तथा एसोचैम राष्ट्रीय शिक्षा परिषद के अध्यक्ष,  कुँवर शेखर विजेंद्र को एशिया और प्रशांत क्षेत्र के विश्वविद्यालयों के संघ (एयूएपी) की सलाहकार परिषद के सदस्य के रूप में आगामी दो वर्ष लिए मनोनीत किया गया है। यह घोषणा संघ के 17वें वार्षिक सम्मेलन के दौरान की गई, जो पहली बार भारत में भोपाल में 18 से 20 नवंबर 2024 तक आयोजित हुआ।

इस सम्मेलन में 15 देशों के 100 से अधिक विश्वविद्यालयों और संस्थानों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। सम्मेलन में जागरण लेकसिटी विश्वविद्यालय, भोपाल के चांसलर और संघ के उपाध्यक्ष श्री हरि मोहन गुप्ता को आगामी दो वर्ष के लिए एयूएपी का नया अध्यक्ष चुना गया।

अपनी नियुक्ति पर  शेखर विजेंद्र ने कहा, “एशिया और प्रशांत क्षेत्र के विश्वविद्यालयों के इस प्रतिष्ठित संघ (एयूएपी) की सलाहकार परिषद का सदस्य बनना मेरे लिए गर्व की बात है। यह नियुक्ति भारत की शिक्षा प्रणाली की वैश्विक पहचान को दर्शाती है। मैं शोभित विश्वविद्यालय के माध्यम से शिक्षा में नई सोच और वैश्विक साझेदारी को प्रोत्साहित करता रहूंगा।”

यह पहली बार है जब एशिया और प्रशांत क्षेत्र के विश्वविद्यालयों के संघ (एयूएपी) का सम्मेलन भारत में आयोजित हुआ है। इस आयोजन ने भारत को वैश्विक शिक्षा में एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान किया। सम्मेलन में आधुनिक शिक्षण प्रणालियों और मूल्यों को जोड़कर शिक्षा में नवाचार की संभावनाओं पर विचार किया गया।

एशिया और प्रशांत क्षेत्र के विश्वविद्यालयों का संघ (एयूएपी)

एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जिसका मुख्यालय बैंकॉक, थाईलैंड में स्थित है। संघ एशिया और प्रशांत क्षेत्र तथा दुनिया भर के विश्वविद्यालयों का एक प्रमुख मंच है जिसे यूनेस्को के साथ उच्चतम औपचारिक परामर्श का स्टेटस प्राप्त है। इसका मुख्य उद्देश्य अपने सदस्यों के बीच बातचीत और सहयोग के लिए एक मुख्य मंच बनना और एशिया और प्रशांत क्षेत्र में विश्वविद्यालयों की प्रभावी आवाज़ के रूप में कार्य करना है।
श्री कुँवर शेखर विजेंद्र की यह नियुक्ति उनके शिक्षा के प्रति समर्पण और वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। उनकी यह भूमिका भारत की शैक्षिक क्षेत्र में वैश्विक उपस्थिति को और सशक्त बनाएगी।

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