हम तंबाकू नहीं खाते बल्कि तंबाकू हमें खाता है
मेरठ: सिगरेट हो या बीड़ी.. तंबाकू का इस्तेमाल दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है. *दिल्ली के पटपड़गंज स्थित मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के कैंसर केयर व ऑन्कोलॉजि के डायरेक्टर व सर्जिकल ऑन्कोलॉजिस्ट, डॉ. नितिन लीखा* ने इस मामले पर अपनी राय रखी. उनका कहना है कि तंबाकू के नुक़सान की वजह से ये दुनियाभर में एक बड़ी फ़िक्र का मुद्दा बना हुआ है. डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के मुताबिक़, ये अनुमान लगाया गया है कि तंबाकू के इस्तेमाल से वैश्विक स्तर पर एक साल में लगभग छह मिलियन लोग मरते हैं. भारत में मरने वालों की तादाद इसका छठा हिस्सा है. यानी, भारत में एक साल में लगभग 1 मिलियन लोग तंबाकू के इस्तेमाल से मरते हैं. इनमें से लगभग 50 लाख मौतें सीधे तंबाकू के इस्तेमाल से होती हैं जबकि बाकी इसके धुएं के संपर्क में आने से होती हैं. ऐसा कहा जाता है कि तंबाकू के इस्तेमाल की वजह से हर छह सेकंड में एक व्यक्ति की मौत हो जाती है और तंबाकू का सेवन करने वालों में से आधे लोग इससे जुड़ी बीमारियों से मर जाते हैं.
ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे इंडिया (जीएटीएस) के अनुसार भारत में तंबाकू इस्तेमा ल करने वालों की अनुमानित संख्या 274.9 मिलियन है, जहां 163.7 मिलियन लोग धुंआ रहित तंबाकू का इस्तेमाल हैं,68.9 मिलियन केवल धूम्रपान करने वाले हैं और 42.3 मिलियन धूम्रपान और धूम्रपान रहित तंबाकू दोनों के उपयोगकर्ता हैं. इसका अर्थ है कि भारत में लगभग 35% वयस्क (47.9% पुरुष और 20.3% महिलाएं) किसी न किसी रूप में तंबाकू का इस्तेमाल करते हैं. भारत में बीड़ी सबसे अधिक खपत वाला तंबाकू उत्पाद है और मुख्य रूप से इसका इस्तेमाल गरीब लोग करते है. भारत में अकेले बीड़ी से 2011 में 5.8 लाख मौतें हुईं.
तंबाकू उत्पादों में लगभग 5000 जहरीले पदार्थ होते हैं, जिनमें से 69 कैंसर पैदा करने के लिए जाने जाते हैं. धूम्रपान करने वाला तंबाकू कार्बन मोनोऑक्साइड छोड़ता है जो ऑक्सीजन के मुक़ाबले खून में हीमोग्लोबिन के साथ ज़्यादा आसानी से मिल जाता है, जिससे शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है. वहीं, जब स्मोकिंग न करने वालों को निकोटीन युक्त धुएं और स्मोकर्स द्वारा छोड़े गए जहरीले रसायनों के संपर्क में लाया जाता है तो इसे निष्क्रिय धूम्रपान या सेकंड हैंड स्मोक के संपर्क में आना कहा जाता है. अब हम आपको तंबाकू से होने वाले नुक़सान के बारे में बताते हैं.
तंबाकू के इस्तेमाल के दुष्प्रभाव
कैंसर: इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पुरुषों और महिलाओं में होने वाले सभी कैंसर का लगभग 30 प्रतिशत तंबाकू से होने वाला कैंसर है. फेफड़ों के कैंसर के बाद पुरुषों में मुंह का कैंसर सबसे आम है. तंबाकू से होने वाली मौतों में 42 प्रतिशत पुरुषों का और महिलाओं की मृत्यु 18.3 प्रतिशत है. फेफड़ों के कैंसर का प्रमुख कारण तंबाकू युक्त धूम्रपान है. हालांकि, उम्मीद की किरण ये है कि धूम्रपान छोड़ने से फेफड़ों के कैंसर का खतरा कम हो सकता है और ऐसा कहा जाता है कि धूम्रपान छोड़ने के 10 साल बाद फेफड़ों के कैंसर का खतरा धूम्रपान करने वालों की तुलना में लगभग आधा हो जाता है.
क्रोनिक रेस्पिरेट्री डिजीज यानी सांस से जुड़ी बीमारियां: तंबाकू युक्त धूम्रपान क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) की सबसे बड़ी वजह है. ये एक ऐसी स्थिति है जहां फेफड़ों में मवाद से भरे बलगम बनने की वजह से सांस लेने में परेशानी होती है. तंबाकू अस्थमा को भी बढ़ाता है. सीओपीडी की गति को धीमा करना और अस्थमा के लक्षणों में सुधार के लिए पूरी तरह स्मोकिंग बंद करना ही सबसे प्रभावी तरीका है.
ट्यूबरक्लोसिस यानी टीबी: क्षय रोग (टीबी) एक ऐसी स्थिति है जो फेफड़ों को नुकसान पहुंचाती है और फेफड़ों के काम को कम कर देती है, जो तंबाकू के इस्तेमाल से और बढ़ जाती है. दुनिया की लगभग एक चौथाई आबादी गुप्त टीबी से पीड़ित है, जिससे उन्हें सक्रिय बीमारी विकसित होने का खतरा है. जो लोग धूम्रपान करते हैं उनमें सक्रिय टीबी विकसित होने की संभावना दोगुनी होती है.
बच्चों पर असर: माता के धूम्रपान करने या स्मोकर के संपर्क में आने के माध्यम से शिशुओं में फेफड़ों की वृद्धि और कार्य पर असर पड़ता है. स्मोकर्स के संपर्क में आने वाले छोटे बच्चों को अस्थमा, निमोनिया, ब्रोंकाइटिस और श्वसन संक्रमण के विकास और बिगड़ने का खतरा होता है. इन बच्चों में बड़े होने पर सीओपीडी विकसित होने का जोखिम भी काफी बढ़ जाता है.
तंबाकू का उपयोग होमोसाइड, आत्महत्या, हृदय रोग, घावों के देर से भरने, इनफरटिल्टी, और पेप्टिक अल्सर सहित अन्य बीमारियों की बढ़ती घटनाओं से भी जुड़ा हुआ है. व्यक्तियों के स्वास्थ्य को प्रभावित करने के अलावा, तंबाकू स्वास्थ्य देखभाल की लागत में बढ़ोतरी और उत्पादकता में कमी के माध्यम से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं को भी प्रभावित करता है. नाबालिगों द्वारा तंबाकू उत्पादों के विज्ञापन और बिक्री पर रोक और सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करने पर रोक होने के बावजूद इसके उपयोग में गिरावट नहीं देखी गई है. इस प्रकार, समय की मांग है कि तंबाकू सेवन से होने वाले अनगिनत खतरों के बारे में लोगों को जागरूक किया जाए.
बता दें कि हर साल 31 मई को विश्व तंबाकू निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है ताकि तंबाकू के उपयोग और सेकंड हेंड धूम्रपान स्मोक के हानिकारक और घातक प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके और किसी भी रूप में तंबाकू के उपयोग को रोका जा सके. इस साल के विश्व तंबाकू निषेध दिवस की थीम “तंबाकू और फेफड़े का स्वास्थ्य” (तोबैको एंड लंग हेल्थ) है. यह अभियान सभी लोगों के स्वास्थ्य में फेफड़ों की मौलिक भूमिका पर ध्यान दिलाएगा और इसका उद्देश्य फेफड़ों के स्वास्थ्य पर तंबाकू के नकारात्मक प्रभाव और कैंसर से लेकर पुरानी सांस की बीमारी के बारे में जागरूकता बढ़ाना