दिल्ली चुनाव: भारतीय राजनीति की करवट

योगेश मोहन

दिल्ली विधानसभा के चुनाव परिणामों ने भारतीय राजनीति को एक नई दिशा व दशा दिखाई है। आम आदमी पार्टी की पराजय के माध्यम से भारतीय जनमानस को एक ऐसा संदेश प्रेषित किया है, जिसका कोई भी विवेकपूर्ण व्यक्ति यदि गहनता से चिंतन करे तो इस परिणाम की अवश्य ही सराहना करेगा।
भारत की राजधानी दिल्ली पर भाजपा की विजय, उसके कुशल नेतृत्व का परिणाम है। इसी के साथ-साथ भाजपा को दिल्ली के उत्थान हेतु अपने श्रेष्ठ उपायों का उपयोग करने का भी एक बहुत ही सुंदर अवसर प्राप्त हुआ है। भारतीय लोकतंत्र को क्षेत्रीय एवं छोटे-छोटे राजनीतिक दलों ने अत्यधिक विषाक्त कर दिया था, इसी कारण देश-विदेश में भारत की छवि अत्यधिक नकारात्मक होती जा रही थी। भाजपा नेतृत्व को सम्भवतया इस तथ्य का आभास पूर्व में ही हो गया था और उन्होंने इसके निराकरण हेतु अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी थी। उनका विचार था कि यदि भारतीय राजनीति को स्वछन्द करना है तो छोटे-छोटे दलों का समूल नष्ट होना अति आवश्यक है।
भाजपा की इस पहल की यदि गणना की जाए तो सर्वप्रथम उत्तर प्रदेश में मायवती की बसपा और चंद्रशेखर की आसपा का अस्तित्व समाप्तप्राय कर दिया था। इसके अतिरिक्ति पंजाब में अकाली दल, उड़ीसा में नवीन पटनायक की बीजू जनता दल, महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की शिवसेना, शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, इन सभी क्षेत्रीय दलों को समाप्त करने का श्रेय भाजपा को ही जाता है, साथ ही उन्होंने विपक्ष के बागी नेता अजीत पवार तथा शिंदे दोनों को ही नतमस्तक कर दिया। इन दोनो नेताओं के द्वारा पुनः नवनिर्मित दलों का सम्भवतया शीघ्र ही भाजपा में विलय हो जाए।
कांग्रेस भी दिल्ली के चुनावों के माध्यम से अरविंद केजरीवाल की राजनीति को समाप्त करना चाहती थी। कांग्रेस नेतृत्व का अनुमान था कि यदि केजरीवाल की राजनीति समाप्त हो जाएगी तो आम आदमी पार्टी स्वयं समाप्त हो जाएगी। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु सम्भवतया भाजपा व कांग्रेस दोनों ने सामूहिक प्रयास किया और सफलता भी प्राप्त हुई। इसी क्रम में पंजाब में भी आम आदमी पार्टी का भविष्य अनिश्चित है।
भारतीय लोकतंत्र की गरिमा को सुदृढ़ करने के प्रयासों में अपेक्षा है कि आगामी बिहार विधानसभा चुनाव के माध्यम से नीतीश यादव कि जदयू, तेजस्वी यादव की राजद और पासवान की लोजपा को भाजपा और कांग्रेस मिलकर समाप्त कर देंगे।
दिल्ली की आम आदमी पार्टी की पराजय के पश्चात सपा प्रमुख अखिलेश यादव एवं टीएमसी प्रमुख ममता बैनर्जी के मस्तिष्क पर भी चिंता की रेखाएं उभरनी प्रारम्भ हो चुकी हैं। अब देखना यह है कि भाजपा एवं कांग्रेस के सामूहिक प्रयास से ये दोनो नेतागण किस प्रकार से स्वयं को सुरक्षित कर पायेंगे। परन्तु इतना निश्चित है कि भविष्य में शेष क्षत्रपों अर्थात् क्षेत्रीय दलों का अस्तित्व संकटपूर्ण होगा। भाजपा व कांग्र्रेस जैसे वृहद दलों का यह सामूहिक प्रयास देश की प्रगति व भ्रष्टाचार को नियन्त्रित करने हेतु अति आवश्यक हो गया है।

*योगेश मोहन*

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