भारतीयों द्वारा भारत की नागरिकता छोड़ना देश हित में नहीं
वर्तमान तकनीकी युग में उच्च आकांक्षाओं के वशीभूत होकर व्यक्ति अपनी संस्कृति, सभ्यता तथा मूल्यों को विस्मृत करता जा रहा है। इसी का परिणाम है कि आज भारतीय समाज, भारत की नागरिकता को छोड़कर, विदेशों की नागरिकता को गृहण कर रहा है। भारतीय प्रतिभा का पलायन विदेशों में स्वयं को उच्च व्यवसाय की ओर अग्रसर करने हेतु हो रहा है। भारतीय युवावर्ग, विदेशों में केवल शिक्षा प्राप्ति हेतु ही नहीं जा रहा, अपितु वे वहाँ जाकर अपना व्यवसाय तथा अपने ग्रहस्थ जीवन का भी आरम्भ कर रहें हैं, भारत देश के लिए यह अत्यधिक चिंतनीय विषय है।
आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2022 में 225620, वर्ष 2023 में 226219 लोगों ने भारत की नागरिकता को छोड़कर विश्व के 135 देशों में जाकर अपना स्थायी निवास बनाया। उपरोक्त आंकड़ो के आधार पर यदि विश्लेषण किया जाये तो आश्चर्य का प्रमुख बिन्दु यह है कि भारत का नागरिक विश्व के छोटे और गरीब देशों, यथा – नाईजीरिया, पेरू, जाबिंया की नागरिकता लेने के लिए भी भारत देश की नागरिकता को छोड़ रहे हैं।
किसी भी देश से जब उसके नागरिक अत्यधिक संख्या में पलायन करते हैं, तो उनके पलायन के कुछ विशेष कारण होते हैं, यथा – देश की चरमराती हुई कानून व्यवस्था, अतिशय भ्रष्टाचार, अस्थिर राजनैतिक वातावरण, देश में युद्ध का भय, बेरोजगारी, महामारी आदि। भारतीयों का विदेशों में पलायन एक अत्यंत गंभीर विषय है, इसको सहजता से स्वीकार नहीं किया जा सकता अपितु राष्ट्रीयता को दृष्टिगत रखते हुए, इस विषय पर विचार किया जाना अत्यंत आवश्यक है। किसी भी देश से वहाँ की जनता का पूर्णरूपेण पलायन उस देश की आन-बान-शान को निश्चितः आहत करता है। भारत के नागरिकों के पलायन में निहित कारणों को खोजना होगा और इसके लिए कठोर निर्णय भी लेने होंगे। भारतीय उद्योगपति विदेशों में अपने धन का निवेश कर रहे हैं, क्योंकि अमेरिका और यूरोप जैसे विकसित देशों की सरकार उद्योगपतियों के स्वागत में रेड कारपेट अर्थात् पूर्णतया सम्मान प्रदान करती हैं, इसके विपरीत भारत देश में, उद्योगपतियों का सरकारी कर्मचारियों के द्वारा शोषण किया जाता है। भारतीयों के पलायन पर नियन्त्रण करने हेतु, इस प्रकार की अनेकों नकारात्मक प्रवृत्तियों को समूल नष्ट करना होगा।
योगेश मोहन