नेशनल हेल्थ क्लेम एक्सचेंज का क्या यह स्वास्थ्य बीमा की भरपाई करेगा?

मेरठ शोभित यूनिवर्सिटी के लॉ डिपार्टमेंट की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ अनीता राठौर ने नेशनल हेल्थ क्लेम एक्सचेंज (जो एक डिजिटल स्वास्थ्य मंच की तर्ज पर कार्य करेगा, यह स्वास्थ्य देखभाल और स्वास्थ्य बीमा पारिस्थितिकी तंत्र में विभिन्न हितधारकों के बीच दावों से संबंधित जानकारी के आदान-प्रदान के लिए प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है) पर अध्ययन कर अपने विचार प्रस्तुत किए हैं:
विनय मलिक का जिगर ख़राब हो गया था| प्रत्यारोपण के अतिरिक्त कोई विकल्प न था, जिसके लिए दस लाख रूपये की आवश्यकता थी, जो उनके मध्यवर्गीय परिवार के पास नहीं थे| जिन परिवारों में घर का खर्च पूरा करना ही बड़ी चुनौती हो उनमें जानकारी व जागरूकता के बावजूद मेडिकल बीमा कराना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य हो जाता है| विनय मलिक का भी हेल्थ इंश्योरेंस नहीं था| फिर भी उनके बच्चे अपने पिता की जान बचाने के लिए इधर उधर से उधार लेकर पैसे की व्यवस्था करने में लगे हुए थे| कुछ पैसे का इंतेज़ाम हो भी गया था, लेकिन तब तक काफी देर हो गई थी और विनय मलिक ने ऑपरेशन टेबल पर पहुंचने से पहले ही दम तोड़ दिया|
यह सिर्फ़ एक दुःख भरी दास्तान नहीं है| आप अगर मध्य व निम्न मध्य वर्गों के घरों में झांकेंगे तो शायद बिना किसी अपवाद के ऐसी कहानियां हर जगह मिल जायेंगी, उनकी त्रासदी कम या ज़्यादा हो सकती है| इसलिए 2024 लोक सभा चुनाव में बेरोज़गारी व महंगाई के साथ ही स्वास्थ्य प्रमुख मुद्दा था| अब स्वास्थ्य मंत्रालय इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया (आईआरडीएआई) के साथ मिलकर ऐसी योजना पर कार्य कर रहा है जिसका उद्देश्य रोगियों को तेज़ी से अच्छी हेल्थकेयर उपलब्ध कराना है और वह भी इस तरह से कि उनकी जेब से कम से कम पैसा खर्च हो| स्वास्थ्य मंत्रालय और आईआरडीएआई नेशनल हेल्थ क्लेम एक्सचेंज (एनएचसीएक्स) लांच करने जा रहे हैं| यह एक डिजिटल प्लेटफार्म है जो इंश्योरेंस कम्पनियों, हेल्थकेयर सेक्टर सर्विस प्रोवाइडर्स और गवर्नमेंट इंश्योरेंस स्कीम एडमिनिस्ट्रेटर्स को एक मंच पर ले आयेगा|
लेकिन सवाल यह है कि क्या एनएचसीएक्स से विनय मलिक जैसे मरीज़ों की समस्या का समाधान हो पायेगा? क्या इस डिजिटल प्लेटफार्म से रोगी आसानी से हेल्थकेयर एक्सेस कर सकेंगे? क्या इससे हेल्थकेयर क्लेम इकोसिस्टम में पारदर्शिता आ सकेगी? आईआरडीएआई का लक्ष्य ’2047 तक सभी को इंश्योरेंस के दायरे में लाने’ का है, इसे हासिल करने में बाधाएं क्या हैं? इस किस्म के अन्य अनेक प्रश्न और भी हैं| लेकिन पहले यह जान लेते हैं कि एनएचसीएक्स काम किस तरह से करेगा?
हेल्थकेयर व हेल्थ इंश्योरेंस इकोसिस्टम में जो विभिन्न स्टेकहोल्डर्स हैं उनकी क्लेम-संबंधी सूचनाओं के एक्सचेंज के लिए एनएचसीएक्स द्वार के रूप में कार्य करेगा| इनके एनएचसीएक्स के साथ मिलने से उम्मीद की जाती है कि हेल्थ क्लेम प्रोसेसिंग बिना किसी रुकावट के हो सकेगी, क्षमता में वृद्धि होगी और इंश्योरेंस उद्योग में पारदर्शिता आयेगी, जिससे पालिसी होल्डर्स और रोगियों को लाभ होगा| ऐसा स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है| क्या एनएचसीएक्स से क्या भारत के डायनामिक व विविध हेल्थकेयर सिस्टम को समायोजित करने में मदद मिलेगी? इसके जवाब में गैलेक्सी हेल्थ एंड अलाइड इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड के एमडी व सीईओ एस प्रकाश का कहना है कि हेल्थकेयर लैंडस्केप विकास कर रहा है ताकि वह आईआरडीएआई के लक्ष्य ’2047 तक सभी को इंश्योरेंस के दायरे में लाने’ में सहयोग कर सके| प्रकाश के अनुसार, “इंश्योरेंस उद्योग इस व्यवस्था को लागू करने के लिए मदद को तैयार है| वह अस्पतालों व इंश्योरर्स के बीच सम्पर्कों को सरल व बेहतर बना रही है, साथ ही निर्बाध, काग़ज़रहित व सुरक्षित कांट्रेक्टचुअल फ्रेमवर्क स्थापित कर रही है| एनएचसीएक्स सभी हेल्थ क्लेम्स के लिए केंद्रीय हब के रूप में कार्य करेगा, जिससे अस्पतालों पर प्रशासनिक दबाव बहुत कम हो जायेगा, जिसे वर्तमान में विभिन्न इंश्योरर्स के लिए अनेक पोर्टल्स से जूझना पड़ता है|” बारह इंश्योरेंस कम्पनियों और एक टीडीपी (थर्ड पार्टी एडमिनिस्ट्रेटर) ने एनएचसीएक्स के मंच पर आने की अपनी औपचारिकताएं पूरी कर ली हैं|
सवाल यह है कि कैशलेस क्लेम्स का क्या होगा? कैशलेस क्लेम्स के इंश्योरेंस क्लेम्स के लिए समयसीमा (टाइमलाइन) निर्धारित कर दी गई है| बीमा प्राधिकरण ने कहा है कि अस्पताल से जैसे ही डिस्चार्ज रिसीप्ट हासिल होती है तो तीन घंटे के भीतर सभी कैशलेस क्लेम्स प्रोसेस कर दिए जायेंगे| इंश्योरेंस रेगुलेटर ने इंश्योरेंस प्रोवाइडर के लिए 31 जुलाई 2024 डेडलाइन के तौर पर निर्धारित की है कि सिस्टम्स व प्रोसस्सेस को दुरुस्त कर लें ताकि इस नवीनतम निर्देश को सही से लागू करना सुनिश्चित किया जा सके|
इसके अतिरिक्त कुछ प्रोत्साहन राशि भी ऑफर की गई है| रोगी के हेल्थ रिकार्ड्स का डिजिटल करण हो और डिजिटल हेल्थ लेन-देन को अपनाया जाये, इसे प्रोत्साहित करने के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण ने जनवरी 2023 से डिजिटल हेल्थ इंसेंटिव स्कीम (डीआईएचएस) के तहत प्रोत्साहन राशि देने की भी घोषणा की हुई है| स्वास्थ्य मंत्रालय के नोट के अनुसार, डीआईएचएस के तहत यह प्रावधान है कि एनएचसीएक्स के ज़रिये प्रत्येक इंश्योरेंस क्लेम पर 500 रूपये प्रति क्लेम या क्लेम राशि का 10 प्रतिशत, जो भी कम हो, प्रोत्साहन राशि के रूप में अस्पतालों को दिये जायेंगे|
दरअसल, एनएचसीएक्स को लाने की भी एक खास वजह है| ‘हेल्थ इंश्योरेंस कवरेज इन इंडिया: इनसाइट्स फॉर नेशनल हेल्थ प्रोटेक्शन स्कीम’ नामक पेपर में कहा गया है कि हेल्थकेयर सेवाएं उपलब्ध कराने और हाई आउट-ऑफ़-पॉकेट खर्च को कम करने, जिससे व्यक्तियों पर अत्यधिक बोझ पड़ता है, के लिए हेल्थ इंश्योरेंस महत्वपूर्ण पालिसी स्ट्रेटेजी है| पेपर में कहा गया है कि जब प्राइवेट कम्पनियों से मेडिकल बीमा लिया जाता है तो अस्पताल में भर्ती होने के मामले बहुत अधिक बढ़ जाते हैं (54.4 प्रति 1,00,000 व्यक्ति)| शहरी क्षेत्रों में इन-पेशेंट (अस्पताल में भर्ती) केयर केस उस समय बहुत ज़्यादा होते हैं जब सरकारी योजनाओं से बीमा होता है (60.4 केस प्रति 1,00,000 व्यक्ति)| इसके विपरीत ग्रामीण क्षेत्रों में इन-पेशेंट केस तब बहुत अधिक होते हैं जब प्राइवेट इंश्योरेंस खरीदा गया हो (73.5 केस प्रति 1,00,000 व्यक्ति)| वैसे कुल इन-पेशेंट केस ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में अधिक होते हैं| ज़ाहिर है इन क्लेम्स में बड़े पैमाने पर धांधली से इंकार नहीं किया जा सकता कि रोगी व अस्पताल की सांठ गांठ से इंश्योरेंस कम्पनियों को चूना लगाने का प्रयास होता है, जिसमें ताज्जुब नहीं कि कम्पनी के कर्मचारी भी शामिल हों| इसलिए एनएचसीएक्स का महत्व बढ़ जाता है|
एनएचसीएक्स का पक्ष लेते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि यह प्लेटफार्म हेल्थ क्लेम्स के मानकीकरण व अंतर में मदद करेगा और अदा करने वाले (इंश्योरेंस कम्पनी/टीपीए/सरकारी योजना प्रशासक) व प्रोवाइडर (अस्पताल/लैब/पोली क्लिनिक) के बीच डाटा, डाक्यूमेंट्स व इमेजेज के निर्बाध आदानप्रदान में मदद करेगा| उद्योग विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि समान डाटा प्रस्तुतिकरण व क्लेम्स डाटा के केंद्रीकृत मान्यकरण से यह प्लेटफार्म हेल्थकेयर के दामों में अधिक मानकीकरण लेकर आयेगा| लेकिन इसमें जो चुनौतियां हैं उन्हें भी अनदेखा नहीं किया जा सकता जैसे रोगी को डिस्चार्ज करने में देरी, अस्पताल व बीमा कंपनी के बीच मिसकम्युनिकेशन आदि स्थितियों को जटिल बना देती हैं|पर्याप्त प्रशिक्षित कार्यबल की कमी भी समस्या है|
डॉ अनीता राठौर
अस्सिस्टेंट प्रोफेसर,
लॉ डिपार्टमेंट, शोभित इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (नैक एक्रीडेटेड ग्रेड ‘ए’ डीम्ड टू. बी. यूनिवर्सिटी), मोदीपुरम, मेरठ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *