भाजपा में भावी परिवर्तन
प्रकृति के प्रत्येक सजीव तथा निर्जीव वस्तु, पदार्थ, प्राणी, व्यवस्था आदि में परिवर्तन का होना एक शाश्वत नियम है। जब भी परिवर्तन होता है तो सुन्दर कोपल खिलती हैं, फूल बनकर विकसित होती हैं, परिपक्व होकर वृक्ष का रूप लेती है, पतझड़ आने पर पीले पत्ते झड़ जाते हैं, पुनः नई कोपल आती हैं और यह क्रम अनवरत चलता रहता है। यही क्रम मनुष्य के जीवन चक्र में भी क्रियान्वित होता है। इसी परिवर्तन की प्रक्रिया को हम देश की व्यवस्था में भी अनुभव करते हैं। इसके विपरीत जब भी परिवर्तन अवरुद्ध हो जाता है, तो वह विनाश का द्योतक होता है।
भाजपा विश्व की अति वृहद एवं धनवान पार्टी है, जो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रयासों से भारत के प्रत्येक गांव, शहर तथा गलियों में अपना अस्तित्व स्थापित कर चुकी है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, भाजपा रूपी वृक्ष की जड़ है जो इसके तनो और फलों को सशक्तता प्रदान करती है। भाजपा के कुछ नेताओं का यह कहना कि उनकी पार्टी, संघ के सहयोग बिना भी अपने अस्तित्व को बनाए रखने में सक्षम है, एक अतिश्योक्तिपूर्ण वक्तव्य है क्योंकि दोनो का संबंध पिता-पुत्र के समान है। यदि भाजपा को संघ का सहयोग मिलना बंद हो जाता है तो भाजपा स्वयं को असहाय वाली स्थिति में पायेगी।
वर्तमान में संघ व भाजपा के संबंधो पर सोशल मीडिया के माध्यम से अत्यधिक टीका टिप्पड़ियाँ की जा रही हैं, परन्तु यह इतना अधिक चर्चा का विषय नहीं हैं क्योंकि जब परिवार विशाल हो जाता है तो उसके सदस्यों के मध्य परस्पर खट्टे मीठे अनुभव अवश्य होते हैं। भाजपा में राष्ट्रीय अध्यक्ष का चयनित होना अथवा मनोनीत होना, विगत कुछ समय से लम्बित है। किसी भी पार्टी का अध्यक्ष उसकी रीढ़ की हड्डी अथवा नींव की ईंट सदृश होता है। यदि अध्यक्ष सशक्त स्वभाव का है, तो वह शीर्ष नेतृत्व को भी अपने सही निर्णय को स्वीकार करने के लिए विवश कर सकता है। इसके विपरीत यदि वह निर्बल स्वभाव का है तो वह अपने शीर्ष नेताओं की कठपुतली बनकर रह जाएगा। ऐसा प्रतीत होता है कि संघ, भाजपा के अध्यक्ष पद पर एक सशक्त व्यक्ति, जो संघ के संस्कारों से ओत-प्रोत हो, को पदासीन करना चाहता है। विगत कुछ वर्षों से भाजपा में अन्य दलों के भ्रष्टाचारियों का जो आगमन होना प्रारम्भ हुआ, वो सम्भवतया राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नियमों के विपरीत है जिस कारण भाजपा की छवि में निरन्तर ह्रास होता जा रहा है। जहाँ भाजपा वर्ष 2024 के चुनाव में 400 पार का नारा लगा रही थी, वह मात्र 240 सीटों पर रूक गयी। उसमें से भी 106 सांसद दलबदलू हैं, जो कभी भी पार्टी को धोखा दे सकते हैं। बाहरी सांसदों के पार्टी में प्रवेश के पश्चात भी सरकार, नीतिश कुमार और चन्द्रबाबू नायडू की बैसाखियों का सहारा लिए हुए है। ऐसी स्थिति में यदि शीर्ष नेतृत्व के द्वारा अतिशीघ्र परिवर्तन नहीं किया गया तो भाजपा के लिए विजयश्री प्राप्त करना सम्भवतया और अधिक कठिन हो जाएगा।
संघ इस वस्तुस्थिति से भली भांति परिचित है और वह भाजपा का ह्रास और अधिक होता नहीं देखना चाहता है। इसलिए संघ की अपेक्षा है कि भाजपा अध्यक्ष एक सुदृढ़ मानसिकता का हो, जो पार्टी को सफलता की ऊचाईयों को प्राप्त कराने में सक्षम हो तथा जिसपर पार्टी गौरवान्वित हो सके। भाजपा की मूल छवि यही है कि वह भ्रष्टाचार विहीन, भारतीय संस्कारों से ओत प्रोत, सत्यता में विश्वास करने वाली, गरीबों का उत्थान करने वाली तथा देशभक्त पार्टी है। आज यह पार्टी अपने कर्तव्य पथ से कुछ भटक गयी है, जिसको संघ पुनः सत्मार्ग पर लाने का अथक प्रयास कर रहा है।
ईश्वर से प्रार्थना है कि उच्च पदासीन संघ व भाजपा नेतृत्व को सही निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करे और भाजपा को एक संस्कारवान अध्यक्ष अतिशीघ्र प्राप्त कराए।
*योगेश मोहन*